सीएम से गुहार , पुनः वापस लौटा दो डोईवाला का सरकारी अस्पताल

 डोईवाला

 डोईवाला का सरकारी अस्पताल जबसे पीपीपी मोड में एक निजी अस्पताल को दिया गया है तभी से डोईवाला की जनता को परेशानी झेलनी पड़ रही है बीच-बीच में  जनता द्वारा इस अस्पताल को पुनः सरकारी श्रेणी में लाने की मांग को लेकर मांग भी की जाती रही है लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो पाई।

 इसी बीच  प्रदेश में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की जगह  नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने प्रदेश की बागडोर संभाली है और जिस तरह से वह पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के अधिकतर निर्णयों को बदल चुके हैं जिससे अब डोईवाला की जनता में भी नए मुख्यमंत्री से आस जगी है की पूर्व मुख्यमंत्री द्वारा लिया गया निर्णय जिसमें सरकारी अस्पताल को पीपीपी मोड में दिया गया उस निर्णय को बदलने की मांग फिर से जोर पकड़ने लगी है।


 लोगों का मानना है कि नए प्रदेश के मुखिया जिनके पास स्वास्थ्य विभाग की कमान है ।वह हजारों की आबादी की जनभावनाओं का ध्यान रखते हुए छेत्र के एकमात्र सरकारी अस्पताल डोईवाला को फिर से सरकार के हाथों में लेकर इसका उद्धार करेंगे जिससे यहां की जनता को लाभ मिलेगा और सरकारी मूल्य पर उन्हें सस्ता इलाज मिल पाएगा।


 वर्तमान में डोईवाला सरकारी अस्पताल के प्रभारी डॉक्टर के0 एस0 भंडारी के कंधों पर ही सारा बोझ पड़ा हुआ है और जिस मेहनत और लगन से उन्होंने कोरोना महामारी में आम मरीजों के साथ-साथ कोविड मरीजों की भी जिम्मेदारी को उठाया उससे एक सरकारी डॉक्टर के प्रति भी आम जनता का विश्वास बढ़ा है वर्तमान में भी इस अस्पताल के प्रभारी होने के अन्य कार्यों के साथ-साथ डॉक्टर भंडारी सैकड़ों मरीजों की ओपीडी में भी व्यस्त रहते हैं यदि सरकार यहां और स्पेशलिस्ट सरकारी डॉक्टर भेजे तो यहां के लोगों को यकीनन बेहतरीन लाभ मिल पाएगा।

 इसीलिए डोईवाला सरकारी अस्पताल को पुनः  पूर्व की भांति  संचालित करने को लेकर डोवाला क्षेत्र में विभिन्न गांव में हस्ताक्षर अभियान भी चलाया जा रहा है जिसमें हजारों लोगों ने अभी तक हस्ताक्षर कर दिए हैं तो वही आम जनमानस से जुड़ा यह मामला अब जोर पकड़ने लगा है।

 तो वहीं राजनीतिक दलों ने भी इसे विधानसभा चुनाव से पहले मुद्दा बना दिया है कुछ दिन पूर्व रायपुर सरकारी अस्पताल के मुख्यमंत्री के उच्चीकरण के आदेश के बाद से अब डोईवाला अस्पताल के मामले में भी जनता की उम्मीद को बल मिला है।

 अब देखना यह होगा कि प्रदेश के नए मुखिया कब इसका संज्ञान लेकर इस अस्पताल का उद्धार करेंगे या यह अस्पताल रेफर सेंटर ही बना  रहेगा।

 लेकिन यह तय है कि यदि नए प्रदेश के मुख्यमंत्री ने इस अस्पताल का पीपीपी मोड खत्म कर  उसे सरकारी अस्पताल की श्रेणी में ला दिया तो जहां उन्हें हजारों लोगों की दुआएं  मिलेंगी तो वहीं क्षेत्र की गरीब जनता को सस्ता व सुलभ इलाज भी मिल पाएगा।