डोईवाला विशेष- दिल्ली विधानसभा चुनाव के बाद उत्तराखंड की विधानसभा में भी तीसरे मोर्चे की सुगबुगाहट सुनाई देने लगी है दिल्ली के विधानसभा चुनाव में जनता ने जहां अपनी पसंद और अपने क्षेत्र में हुए काम के आधार पर आम आदमी पार्टी को चुनकर जहां राष्ट्रीय पार्टियों को नकार दिया ।
वहीं उत्तराखंड में भी कई विधानसभा क्षेत्रों में अब नए समीकरण उभर कर सामने आ रहे हैं इसी कड़ी में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की अपनी विधानसभा डोईवाला में भी अब नए समीकरण सामने आते जा रहे हैं और राष्ट्रीय पार्टियों को छोड़ अब लोग नए समीकरणों पर भी विचार करने लगे हैं और तीसरे मोर्चे की सुगबुगाहट अब डोईवाला विधानसभा में भी अंदरूनी तौर पर घूमने लगी है।
अभी वैसे तो विधानसभा चुनाव के लिए 2 वर्ष बाकी है लेकिन दिल्ली चुनाव में जिस तरह से लोगों ने तमाम प्रचार प्रसार एवं बड़ी-बड़ी हस्तियों के कूदने के बावजूद भी राष्ट्रीय पार्टियों को नकार कर आम आदमी पार्टी पर भरोसा जताया उससे अब मुख्यमंत्री की विधानसभा डोईवाला में भी राष्ट्रीय पार्टियों से टिकट की आस लगाए कद्दावर नेता पार्टी टिकट की परवाह किए बगैर निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं ।
जिसमें मुख्य रुप से कांग्रेस में तवज्जो ना मिल पाने के कारण नाराज कार्यकर्ता और भाजपा में हाशिए पर डाल दिए गए कार्यकर्ता मिलकर मजबूत प्रत्याशी इस बार निर्दलीय रूप में उतार सकते हैं जिससे त्रिवेंद्र सिंह रावत की डगर डोईवाला विधानसभा में कठिन हो सकती है।
जिस तरह से दिल्ली में शिक्षा और स्वास्थ्य के मुद्दे पर अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में एकतरफा चुनाव में जीत हासिल की।वही मुद्दा डोईवाला विधानसभा में भी घूम सकता है यहां सरकारी विद्यालयों का जहां हाल बेहाल है तो प्राइवेट विद्यालय भी लगातार फीस बढ़ाकर आम आदमी की गाढ़ी कमाई लूटने का काम कर रहे हैं और सरकार आंखें मूंदे बैठी है।
वहीं डोईवाला के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र को पीपीपी मोड में दिए जाने के बाद से आम आदमी के लिए सस्ता और अच्छा इलाज करा पाना भी नामुमकिन साबित हो रहा है जिसका असर सीधा मुख्यमंत्री के विरोध के रूप में सामने आ रहा है जिस पर जनता ने नगर पालिका चुनाव व जिला पंचायत चुनाव में भी अपना इरादा जाहिर कर दिया है ।
लेकिन उसके बावजूद भी शिक्षा और स्वास्थ्य पर सरकार द्वारा डोईवाला क्षेत्र में कोई ध्यान न दिए जाने से वह आक्रोश और बढ़ता जा रहा है तो वहीं सरकार द्वारा दी जाने वाली तमाम योजनाओं का लाभ जनता को सीधे ना मिलकर दलालों के चक्कर काटकर मिल रहा है जिससे सरकार की छवि धूमिल हो रही है और यदि इसमें जल्द ही सुधार ना किया गया तो 2022 में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के लिए डोईवाला की चुनावी डगर मुश्किल हो सकती है